Friday, September 5, 2014

दसलक्षण धर्म --> (उत्तम मार्दव धर्म)

जय जिनेन्द्र,
- कल हमने पढ़ा कि पहली कषाय (क्रोध) के अभाव होने को क्षमा धर्म कहते हैं !
अब आगे धर्म के दसलक्षणों के क्रम में दूसरा है "मार्दव धर्म" और चार कषायों के क्रम में दूसरी है "मान कषाय"
माने,
- मान के अभाव को मार्दव धर्म कहते हैं !
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२- उत्तम मार्दव धर्म :-
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- मार्दव का अर्थ होता है, मृदुता(कोमलता) का होना या मृदु होने की अवस्था/भाव का होना ।
याने,
कोमलता का भाव होने और मान/मद/अभिमान/अहंकार का अभाव होने को "उत्तम मार्दव" धर्म कहते हैं !
- किसी अहंकारी व्यक्ति की तुलना एक नशे में चूर व्यक्ति से की जाती है,
मद = मदिरा क्यूँ ?
- क्यूंकि इस मद के आश्रय को पाकर यह जीव सब कुछ भूल जाता है ।
जैसे नशे में धुत व्यक्ति को कोई समझा नहीं सकता औरों की तो बात ही क्या उसके सगे-सम्बन्धी जन भी उसे समझाने में असमर्थ हैं, उसी प्रकार अभिमानी व्यक्ति को कोई समझा नहीं सकता ।
- सम्यक् दर्शन को दूषित करने वाले, मलिन करने वाले भावों का नाम है 'मद' ।
- अर्हन्त भगवान् जिन 18 दोषों से रहित हैं उनमे एक है 'मद' ।
- हमने जब "मद" पढ़े तो मद के 8 प्रकार पढ़े थे :-
ज्ञानं पूजां कुलं जाति, वलमर्द्वि तपो वपुः ।
अष्ठा वाश्रित्य मानित्वं, स्मयमा दुर्गतस्मया: ।।
१ - ज्ञान का मद,
२ - पूजा/प्रतिष्ठा/ऐश्वर्य का मद,
३ - कुल का मद,
४ - जाति का मद,
५ - बल का मद,
६ - ऋद्धि का मद,
७ - तप का मद और
८ - शरीर/रूप का मद
- ऊपर कहे आठ प्रकार का मद न करना, धर्मात्मा, व्रती, गुरुजनों व विद्वानों को देखकर उनकी विनय करना !
- देव-शास्त्र-गुरु की मन-वचन-काय से सत्कार करना उत्तम मार्दव धर्म है !
- मान कषाय तो अनंत संसार बढ़ाने वाली है, किन्तु मार्दव संसार परिभ्रमण का नाश करने वाला है !
- यह मार्दव गुण "दयाधर्म" का कारण है !
#याद रखिये :-
- जिनके मार्दव गुण है, उन्ही का व्रत पालना, संयम धारण करना, तप-त्याग-स्वाध्याय-दान इत्यादि करना सफल है, अभिमानी का सब निष्फल है !
- अभिमानी के बिना अपराध किये ही सब लोग उसके बैरी हो जाते हैं, सभी लोग अभिमानी की निंदा करते हैं और प्रतिपल उसका पतन होते देखना चाहते हैं !
- ऐसे मेरे निज स्वभाव के घातक इस मान कषाय का अभाव हो मै अपने मार्दव गुण को प्रगटाऊं, तो ही आज का दिन सार्थक होगा !
नोट - एक बार आठ मद भी अवश्य पढ़ें !
आज के लिए इतना ही ...

--- उत्तम मार्दव धर्म की जय ---

Jain Dharam Saar

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