Friday, September 5, 2014

दसलक्षण धर्म --> (उत्तम संयम धर्म)

जय जिनेन्द्र,
धर्म के दसलक्षण रूप क्रम में अब तक हमने समझा कि :-
- क्रोध कषाय का अभाव होना - क्षमा धर्म है ...
- मान कषाय का अभाव होना - मार्दव धर्म है ...
- माया कषाय का अभाव होना - आर्जव धर्म है ...
- लोभ कषाय का अभाव होना - शौच धर्म है ...
और
- असत्य का अभाव होना - सत्य धर्म है !
अब आगे,
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६ - उत्तम संयम धर्म :-
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- संयम = सम्यक् + नियम !
- संयम = नियंत्रण !
- संयम = "बड़ी सावधानी से" अपनी इंद्रियों को वश मे करना, संयम है.
- व्रत व समिति का पालन करना, मन-वचन-काय की अशुभ प्रवत्तियों का त्याग करना, इन्द्रियों को वश में करना उत्तम संयम धर्म है !
#संयम २ प्रकार का कहा है :-

१- प्राणी संयम :- सभी जीवों की रक्षा करना तथा करने का भाव निरंतर होना, प्राणी संयम है !
२- इन्द्रिय संयम :- पांच इन्द्रियों व मन को नियंत्रण में रखना तथा रखने का निरंतर भाव होना, इन्द्रिय संयम है !
- आज के दिन हमे कुछ समय निकाल कर विचार करना ही चाहिए कि क्या हम, हमारी क्रियाएँ, हमारे भाव संयमित हैं, हमारे जीवन में संयम का कितना प्रभाव है !
~अपने से बलहीन कोई टकरा गया तो उसकी हिंसा तन व वचन से करदी, कहीं कोई बलशाली टकरा गया तो भावों से ही उसकी हिंसा करली ...
~भूख लगी, जो मिला खा लिया ...
~प्यास लगी, जो मिला पी लिया ...
~किसी से कलह हुई, तो मुँह में आया कह दिया ...
~जो मन-भाया खरीद लिया ...
~जो मन आया उठा लिया, जो मन आया यहाँ-तहाँ फेंक दिया !
इस सबमें संयम कहाँ है ?
- संयम जिस जीव में हो, उसके पहले के बाकी धर्म तो स्वत: ही सिद्ध हो जाते हैं क्यूंकि सोचने वाली बात है कि संयमित जीव को :-
क्रोध किस बात पर आएगा ?
अभिमान किस बात का दिखाएगा ?
वह मायाचारी क्या पाने के लिए करेगा ?
वह लोभ किस पदार्थ के प्रति धरेगा ?
झूठ का सहारा क्यूँ लेगा ?
- और धर्म के इस लक्षण को धारे बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते क्यूंकि संयम को
"तप की पहली सीढ़ी कहा है" ...
जिसके संयम नहीं है, जो असंयमित है वह तप धर्म को अंगीकार कदापि नहीं कर सकता !
- जिनागम में संयम-धारण केवल मुनिराजों को ही नहीं अपितु गृहस्थों को भी "गृहस्थ के 6 आवश्यक" के रूप में परमावश्यक बताया है !
- अब हमे अपनी क्षमतानुसार जितना हो सके अपनी इन्द्रियों और मन को संयमित करके अपना संसार-सागर से मुक्ति रूप ध्येय साधना चाहिए !  
हमे प्रतिदिन मंदिर जी मे नियम लेने चाहियें की आज मैं इतनी बार भोजन करूँगा, इतने पदार्थ ग्रहण करूँगा, खेल नही खेलूँगा, सिनेमा नही देखूँगा या जो भी आवश्यक लगे ... ऐसे भाव आने लगे तो ही आज के इस "उत्तम संयम-धर्म" का दिन सार्थक है !
आज के लिए इतना ही ...
to be continued ....

--- उत्तम संयमधर्म की जय ---
Jain Dharam Saar
http://www.jainworld.com/lectures/das.asp
 

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