Friday, September 5, 2014

दसलक्षण धर्म --> (उत्तम सत्य धर्म)

जय जिनेन्द्र,
अब तक हमने पढ़ा कि,
- क्रोध कषाय का अभाव होना - क्षमा धर्म है ...
- मान कषाय का अभाव होना - मार्दव धर्म है ...
- माया कषाय का अभाव होना - आर्जव धर्म है ...
और
- लोभ कषाय का अभाव होना - शौच धर्म है !
अब आगे,
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५- उत्तम सत्य धर्म :-
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- जैसा देखा या सुना हो, उसे वैसा नहीं कहना/बताना ही झूठ है !
- जिन वचनों से किसी धर्मात्मा या निर्दोष प्राणी का घात हो, ऐसे सत्य वचन बोलना भी झूठ कि श्रेणी में आता है !!!
- छल-कपट, राग-द्वेष रहित वचन बोलना, सर्व हितकारी, प्रामाणिक, मितकारी, कोमल वचन बोलना, धर्म की हानि या कलक लगाने वाले , प्राणियों को दुःख पहुचाने वाले वचन न कहना "उत्तम सत्य धर्म" है !
- जहाँ बोलने से धर्म की रक्षा होती हो, प्राणियों का उपकार होता हो, वहां बिना पूछे ही बोलना और जहाँ आपका व अन्य का हित नहीं हो वहां मौन ही रहना उचित कहा है !
# सत्य ही मनुष्य जीवन कि शोभा है !
ज़रा सोचिये :-
हम अनन्तानन्त काल तो निगोद में ही रहे, वहां पर "वचनरूप वर्गणा" ही ग्रहण नहीं की ! जैसे तैसे निकल वहां से फिर अनंत समय तक पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक बने, वहां तो जिह्वा इन्द्रिय/बोलने की शक्ति ही नहीं पाई !
फिर वहां से निकल कर दोइन्द्रिय, तीनीन्द्रिय, चतुरिंद्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंच में जन्म लिया तो वहां जिह्वा इन्द्रिय तो पाई किन्तु अक्षर स्वरुप शब्दों का उच्चारण करने की सामर्थ्य नहीं मिली !
फिर कहीं जाकर अत्यंत दुर्लभ इस मनुष्य पर्याय में जन्म लिया, एक मनुष्यपने में ही वचन बोलने की शक्ति प्रकट होती है !
- ऐसी दुर्लभ वचन बोलने की सामर्थ्य को पाकर उसे असत्य/झूठ वचन बोलकर बिगाड़ लेना, इससे बड़ा अनर्थ अपने साथ मैं और क्या कर सकता हूँ भला ???
- आँख, नाक, कान, मुख तो जानवरों को भी होते हैं, खाना-पीना, काम-भोग इत्यादि तो जानवरों को भी प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु वचन कहने, सुनने, समझने, पढ़ने-पढ़ाने की शक्ति को पाकर भी यदि मैंने जिनवाणी का श्रद्धान नहीं किया, तो अपना घोर अहित किया !
- सत्य बोलने से समस्त विद्याएं सिद्ध हो जाती हैं !
- सत्य के प्रभाव से अग्नि, जल, विष, सिंह, सर्प, दुष्ट, देव, मनुष्यादि बाधा नहीं कर सकते !
- सत्य के प्रभाव से देव भी सेवा करते हैं !
- जहाँ सत्य नहीं वहां अणुव्रत-महाव्रत नहीं हो सकते !
- झूठ बोलने वाले का तो परिजन भी तिरस्कार करते हैं ! उसकी घर-समाज कहीं कोई साख नहीं होती ! उसकी बातों का कहीं कोई मोल नहीं होता !
- झूठ बोलने वाले जीव नियम से ही नरक-तिर्यंच आदि खोटी गतियों में जाते है, और जिह्वा छेदन, सर्व धन हरण जैसे दंड भुगतने पड़ते हैं !
- हितोपदेशी भगवान कहते हैं कि यह जो मनुष्य पर्याय मिली है अब सत्य के प्रभाव से यहाँ उज्जवल यश, वचन की सिद्धि, द्वादशांग श्रुत का ज्ञान पाकर, फिर इन्द्रादि देव होकर, तीर्थंकर आदि उत्तम पद की प्राप्ति कर निर्वाण को प्राप्त होऊं !
ऐसी भावना निरंतर भाते हुए अब आगे के बचे हुए जीवन में सत्य वचन बोलने का दृढ़ता से अभ्यास करूँ !
आज के लिए इतना ही ...


--- उत्तम सत्य धर्म की जय ---

Jain dharam saar
http://www.jainworld.com/lectures/das.asp
 

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