Sunday, September 7, 2014

दसलक्षण धर्म --> (उत्तम त्याग धर्म)

जय जिनेन्द्र,
दसलक्षण पर्व में आज "उत्तम त्याग धर्म" का दिन है !!!
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8- उत्तम त्याग धर्म :-
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- अंतरंग और बहिरंग दोनों प्रकार के परिग्रहों का त्याग उत्तम त्याग है !
#व्यवहार से :-
साधु, मुनि, व्रती, गुरु जान आदि को उनके दर्शन, ज्ञान और चरित्र की वृद्धि के लिए "भक्तिभाव से" और दुखित, भूखे, अंगहीन, हीनदरिद्रियों को "करुणाभाव से" भूख-प्यास में आहार-जल देना, रोग अवस्था में शुद्ध औषधि देना, विद्याविलाषियों को शास्त्र देना और भयभीत जीवों को अभय दान देना, उत्तम त्याग धर्म है !
#निश्चय से :-
अपनी आत्मा से अनादिकाल से लगे हुए राग-द्वेष-मोहादि परभावों, जिनके कारण वह अनंत काल से संसार में भटक रहा है, से छुड़ाकर मुक्त कर देना ही उत्तम त्याग धर्म कहा है ! 
- जिनागम में 4 प्रकार का दान बतलाया है :-
१ :- आहार दान 
२ :- औषधि दान
३ :- शास्त्र दान
४ :- अभय दान
- त्यागी और साधुओं को चारों प्रकार का दान देना, विषय-कषायों को त्यागना उत्तम त्याग है !
- परोपकार के लिए अपने साधन(द्रव्य आदि) का त्याग भी इसी श्रेणी में आता है !
#ध्यान दें :-
दान के सन्दर्भ में :
- पात्र - जिसे दान दिया जा रहा है !
- दाता - जो दान दे रहा है !
- द्रव्य - जो दान दिया जा रहा है !
और,
- विधि का विशेष महत्व है ! 
#पुनः: ध्यान दें :-
- दान या त्याग में किसी भी प्रकार का आकांक्षा, पछतावा, प्रदर्शन, अहंकार, हिंसा और किसी भी प्रकार का कोई उदेश्य यदि हो तो वह दान नहीं, त्याग नहीं !
- जिस वस्तु की अब मुझे ज़रूरत नहीं उसे किसी को दे देना त्याग नहीं है !
हम पहले भी पढ़ चुके हैँ कि :-
- मंदिर जी में ५,००० रुपये दान दिये अपना नाम शिला पर अंकित करा लिया !
- मंदिर जी में पंखा देने वाले पंखे की पंखुड़ी पर अपना नाम लिखवा देते हैं !
- पत्थर लगवाने वाले, फर्श पर, दीवारों पर अपना नाम लिखवा देते हैं !
- वेदी बनवाने के लिए कुछ पैसे दे दिए, तो वेदी पर ही नाम अंकित करवा दिया !
- अलमारी/चौकी/मेज/बर्तन जो दिए उसपर ही नाम लिखवा दिया !
= याद रखें = मेरा नाम हो, के अभिप्राय से दिया हुआ अरबों-खरबों का दान भी निष्फल है, कु-दान है !
- हमे प्रतिदिन अपनी यथा-शक्ति अनुसार आहार, औषधि, अभय और ज्ञान-दान धर्म-पात्रों को भक्ति भाव से देना चाहिए.
अपनी कमाई मे से कुछ हिस्सा हमे ज़रूर दान करना चाहिए.
- जो पाप हम परिग्रह के संचय मे तथा आरंभ कार्यों मे लिप्त होने क कारण इक्कट्ठे करते हैं, दान उस पाप के भार को हल्का करता है...
- जहाँ त्याग की भावना होगी वहां क्रोध-मान-माया और लोभ स्वयं ही विनश जायेगा !
- चोरी-कुशील-परिग्रह रूपी पाँचों पाप भावों का अभाव हो सुखमयी संतोष प्रकट हो जायेगा !
आज के लिए इतना ही ...
to be continued ....

--- उत्तम त्यागधर्म की जय ---

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