Friday, September 5, 2014

दसलक्षण धर्म --> (उत्तम तप धर्म)

जय जिनेन्द्र,
- पिछले दिनों में हमने इस दुःख रूप संसार-समुद्र से उत्तम सुख (मोक्ष) में पहुँचाने वाले धर्म के दसलक्षणों में से आदि के 6 (क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य और संयम) लक्षण पढ़े !
अब उसी क्रम में आगे आज "उत्तम तप धर्म" का दिन है !!!
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7- उत्तम तप धर्म :-
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"इच्छा निरोध: तप:"
माने,
- इच्छाओं का निरोध करना तप है !

- जिस प्रकार सोने को तपाने पर वह समस्त मैल छोड़ कर शुद्ध हो जाता है और चमकने लगता है;
जिस प्रकार सरोवर में रुका/जमा हुआ जल, सूरज की गर्मी में तपने के कारण सूखकर उड़ जाता है,
उसी प्रकार सांसारिक विषय-भोगों की अभिलाषा से विरक्त होकर अनादि कर्म बंध से सिद्ध-स्वरुप निर्मल आत्मा को अनशनादि बारह प्रकार के तप से तपाकर कर्म-मल रहित करना, उत्तम तप है !
# तप से "निर्जरा" होती है ! कर्मों का क्षय करने के लिए तप करना आवश्यक है ! 
- ध्यान दें :-
शरीर को पंचाग्नि में तपाना, शरीर पर फसल उगा लेना, उसे जलाना, पानी में डूबे रह कर गलाना, ऐसे कार्यों को "मिथ्यादृष्टि जीव" तप मानता है !
तप का अर्थ है,
"ज्ञानपूर्वक" आत्मा को कर्मों के बंधन से छुड़ाना !
- तप 2 भेद से कुल 12 प्रकार के होते हैं ! जिनके विषय में हम पहले पढ़ चुके !
# 6 बहिरंग तप -
अनशन, उनोदर, व्रत-परिसंख्यान, रस-परित्याग, विविक्त-शयनासन और काय-क्लेश. 
# 6 अंतरंग तप -
प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्ति , स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान...
- यद्यपि तप की प्रधानता मुनीश्वरों के ही होती है, किन्तु गृहस्थों को भी निरंतर तप करते रहना चाहिए !
गृहस्थ भी यदि तप भावना भाता रहे तो रोगादि कष्ट आने पर उसे फिर डर नहीं लगता, इन्द्रियों पर विजय पा लेता है, तप का अभ्यास हो जाने के कारण वृद्ध अवस्था आने पर उसकी बुद्धि चलित नहीं होती, संतोष प्रवृत्ति प्रकट होती है, दीनता का अभाव हो जाता है, परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और आगे संसार सागर से पार लगता है !
- तीर्थंकर प्रकृति का बँध कराने वाली, 16 कारण भावनाओं में सांतवी है "शक्तिस्तप भावना" !
शक्ति के अनुसार तप करने की भावना को शक्तिस्तप भावना कहते हैं. मुनीराज निरंतर तप करते हैं, यह भावना भाते हैं, किंतु गृहस्थ के आत्म-कल्याण के लिए भी यह परम-आवश्यक है.
- जो व्यक्ति निरंतर तप करते हुए चिन्त्वन करता है कि मैं अपने तप की निरंतर वृद्धि करूँ, वह शीघ्र ही इस संसार से पार पाता है !
- विचार करने वाली बात है, की जब उसी भव से मोक्ष जिनका सुनिश्चित था, ऐसे परमवंदनीय तीर्थंकर के जीवों को भी तप करना पड़ा, तो हम और आप यदि इस अत्यंत दुर्लभ मनुष्य जीवन में तप धारण नहीं करते, तो इसका अर्थ इस पर्याय को व्यर्थ गवाना ही है, और कुछ भी नहीं !!!
नोट - एक बार बारह तप भी अवश्य पढ़ें ! और शक्ति अनुसार जितना भी, जैसा भी संभव हो आज के दिन धारण करने का प्रयत्न करें !
आज के लिए इतना ही ...
--- उत्तम तप धर्म की जय ---

Jain Dharam Saar 
http://www.jainworld.com/lectures/das.asp

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